वर्ण या अक्षर शब्द का अर्थ है - 'जो न घट सके, न नष्ट हो सके'। इसका प्रयोग पहले 'वाणी' या 'वाक्' के लिए एवं शब्दांश के लिए होता था। 'वर्ण' के लिए भी अक्षर का प्रयोग किया जाता रहा। यही कारण है कि लिपि संकेतों द्वारा व्यक्त वर्णों के लिए भी आज 'अक्षर' शब्द का प्रयोग सामान्य जन करते हैं। भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन ने अक्षर को अंग्रेजी 'सिलेबल' का अर्थ प्रदान कर दिया है, जिसमें स्वर, स्वर तथा व्यंजन, अनुस्वार सहित स्वर या व्यंजन ध्वनियाँ सम्मिलित मानी जाती हैं।
एक ही आघात या बल में बोली जाने वाली ध्वनि या ध्वनि समुदाय की इकाई को अक्षर कहा जाता है। इकाई की पृथकता का आधार स्वर या स्वररत् (वोक्वॉयड) व्यंजन होता है। व्यंजन ध्वनि किसी उच्चारण में स्वर का पूर्व या पर अंग बनकर ही आती है। अस्तु, अक्षर में स्वर ही मेरुदंड है। अक्षर से स्वर को न तो पृथक् ही किया जा सकता है और न बिना स्वर या स्वररत् व्यंजन के अक्षर का निर्माण ही संभव है। उच्चारण में यदि व्यंजन मोती की तरह है तो स्वर धागे की तरह। यदि स्वर सशक्त सम्राट है तो व्यंजन अशक्त राजा। इसी आधार पर प्रायः अक्षर को स्वर का पर्याय मान लिया जाता है, किंतु ऐसा है नहीं, फिर भी अक्षर निर्माण में स्वर का अत्यधिक महत्व होता है। कतिपय भाषाओं में व्यंजन ध्वनियाँ भी अक्षर निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं। अंग्रेजी भाषा में न, र, ल् जैसी व्यंजन ध्वनियाँ स्वररत् भी उच्चरित होती हैं एवं स्वरध्वनि के समान अक्षर निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं। अंग्रेजी सिलेबल के लिए हिंदी में अक्षर शब्द का प्रयोग किया जाता है। डॉ॰ रामविलास शर्मा ने सिलेबल के लिए 'स्वरिक' शब्द का प्रयोग किया है। (भाषा और समाज, पृ. 59)। चूँकि अक्षर शब्द का भाषा और व्याकरण के इतिहास में अनेक अर्थच्छाया के लिए प्रयोग किया गया है, इसलिए सिलेबल के अर्थ में इसके प्रयोग से भ्रमसृजन की आशंका रहती है।
शब्द के उच्चारण में जिस ध्वनि पर शिखरता या उच्चता होती है वही अक्षर या सिलेबल होता है, जैसे हाथ में आ ध्वनि पर। इस शब्द में एक अक्षर है। 'अकल्पित' शब्द में तीन अक्षर हैं - अ, कल्, पित् ; आजादी में तीन - आ जा दी; अर्थात् शब्द में जहाँ जहाँ स्वर के उच्चारण की पृथकता पाई जाए वहाँ-वहाँ अक्षर की पृथकता होती है।
ध्वनि उत्पादन की दृष्टि से विचार करने पर फुफ्फुस संचलन की इकाई को अक्षर या स्वरिक (सिलेबल) कहते हैं, जिसमें एक ही शीर्षध्वनि होती है। शरीर रचना की दृष्टि से अक्षर या स्वरिक को फुफ्फुस स्पंदन भी कह सकते हैं, जिसका उच्चारण ध्वनि तंत्र में अवरोधन होता है। जब ध्वनि खंड या अल्पतम ध्वनि समूह के उच्चारण के समय अवयव संचलन अक्षर में उच्चतम हो तो वह ध्वनि अक्षरवत् होती है। स्वर ध्वनियाँ बहुधा अक्षरवत् उच्चरित होती है एवं व्यंजन ध्वनियाँ क्वचित्। शब्दगत उच्चारण की नितांत पृथक् इकाई को अक्षर कहा जाता है, यथा
- एक अक्षर के शब्द : आ,
- दो अक्षर के शब्द : भारतीय, उर्दू,
- तीन अक्षर के शब्द : बोलिए, जमानत,
- चार अक्षर के शब्द : अधुनातन, कठिनाई,
- पाँच अक्षर के शब्द : अव्यावहारिकता, अमानुषिकता
किसी शब्द में अक्षरों की संख्या इस बात पर कतई निर्भर नहीं करती कि उसमें कितनी ध्वनियाँ हैं, बल्कि इस बात पर कि शब्द का उच्चारण कितने आघात या झटके में होता है अर्थात् शब्द में कितनी अव्यवहित ध्वनि इकाइयाँ हैं। अक्षर में प्रयुक्त शीर्ष ध्वनि के अतिरिक्त शेष ध्वनियों को 'अक्षरांग' या 'गह्वर ध्वनि' कहा जाता है। उदाहरण के लिए 'चार' में एक अक्षर (सिलेबल) है जिसमें आ शीर्ष ध्वनि तथा च एवं र गह्वर ध्वनियाँ हैं।
हिन्दी वर्णमाला के समस्त वर्णों को व्याकरण में दो भागों में विभक्त किया गया है- स्वर और व्यंजन।
वर्णमाला
- स्वर- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
- अनुस्वार- अं
- विसर्ग- अ:
- व्यंजन-
क, ख, ग, घ, ङ
च, छ, ज, झ, ञ
ट, ठ, ड, ढ, ण, ड़, ढ़
त, थ, द, ध, न
प, फ, ब, भ, म
य, र, ल, व
श, ष, स, ह
च, छ, ज, झ, ञ
ट, ठ, ड, ढ, ण, ड़, ढ़
त, थ, द, ध, न
प, फ, ब, भ, म
य, र, ल, व
श, ष, स, ह
- गृहीत- ज़, फ़, ऑ
- संयुक्त व्यंजन- क्ष, त्र, ज्ञ, श्र
स्वर
- जिन वर्णों का उच्चारण करते समय साँस, कंठ, तालु आदि स्थानों से बिना रुके हुए निकलती है, उन्हें 'स्वर' कहा जाता है।
व्यंजन
- जिन वर्णों का उच्चारण करते समय साँस कंठ, तालु आदि स्थानों से रुककर निकलती है, उन्हें 'व्यंजन' कहा जाता है।
- प्राय: व्यंजनों का उच्चारण स्वर की सहायता से किया जाता है।
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